वह सुबह कभी तो आएगी
पाठ का सारांश:-
प्रस्तुत पाठ वह सुबह कभी तो आएगी सलमा जी के द्वारा लिखित है। यह एक संस्मरण हे पाठ में भोपाल गैस त्रासदी का वर्णन हुआ है।
- जिसे इस त्रासदी को सहने वाली सलमा ने वह सुबह कभी तो आएगी शीर्षक से लिखा है। इसमें सलमा ने अपने बारे में बताते हुए लिखा है कि मैं बहुत छोटी थी जब गैस रिसी थी।
- अम्मा मुझे पकड़कर जहाँगीराबाद भागी थी और मुझे याद है जब मैंने पहला कदम बीमारी में ही बढ़ाया है। उस बीमारी ने मुझे अभी तक नहीं छोड़ा है। कुछ समय के लिए ठीक था। लेकिन अब फिर से वापस आ गया है। मेरा गला और ऑंखे सूज जाती है। सूजन के कारण मेरा चेहरा फूल जाता है। मेरे गले में अंदर ही अंदर खून बहता है।
- मेरी सांसे फूल जाती है और में बेहोश हो जाती हूँ। मेरे पूरे शरीर में लाल-लाल चकते निकल आते हैं। सिक्के की आकार में जो आज कल थोड़ा छोटा है। मेरे दाहिने पैर के कारण मैं ठीक से चल नहीं पाती हूँ। मेरे पैर में छाले भी पड़ गए हैं। हमने इस भयंकर गैस कांड में कितना कुछ सहन किया है, इसने तो हमारी जिंदगी ही पूरी तरह से बदल दी। हम लाचार और बेघर हो गए।
- मेरे अब्बू भी इस भयंकर दुर्घटना में 'चल बसे माँ ये सब सहन न कर सकी और मानसिक रूप से बीमार हो गई। दरवाजे पर बैठकर दिन भर अब्बू का इंतजार करती और किसी की आहट सुनने पर WMD हमें कहती तुम्हारे अब्बू आ रहे हैं। चाय बना दो हमारे लाख बोलने पर की अब्बू मर चुके हैं वो नहीं मानती और हमें ही मारने लगती।
- डॉक्टर कहते कि इनको खुश रखा करो लेकिन उनकी हालत देख रोना आ ही जाता था। कुछ महीनों तक ये सब चलता रहा। कुछ समय बाद माँ ने खुद को संभाला शायद उनको यह एहसास हो गया कि उनको ही कुछ करना पड़ेगा नहीं तो हम जिंदा नहीं रह पाएँगे।
- अब्बू की दुकान बेचकर कुछ दिन तक घर का खर्चा तो चल गया। फिर माँ ने दूसरों के यहाँ काम किया दोस्तों, रिश्तोदर से उधार माँगे। सबसे ज्यादा खर्च तो मेरे ऊपर होता था में हमेशा बीमार रहती थी। मेरी जुड़वा बहन बहुत अच्छी थी। माँ तो मुझसे तंग आकर कभी- कभार चिल्ला देती की में इतना खर्च नहीं कर सकती खर्च करके तंग आ चुकी हूँ।
- एक डॉक्टर ने बताया कि मैं मरने वाली हूँ माँ मुझे नर्सिंग होम ले गई। वहाँ खर्च बहुत ज्यादा था। एक दिन का 250 रुपये और इलाज का अलग लेकिन मेरी माँ हार नहीं मानी और मेरा इलाज करवाया। पैसे को कहीं न कहीं से ले आती थी। अब मैं आयुर्वेद का दवाई खाती हूँ। काफी आराम मिलता है। अब में ठीक होने लगी हूँ। पाँव के छाले सुख गए हैं। पसलियों का दर्द चला गया है। चेहरे का सृजन, सिर दर्द बदन दर्द, गले से खून बहना बंद हो गया है। अब मैं ठीक हो रही हूँ। मैं बहुत खुश हूँ, मैं जीना चाहती हूँ।
- इस तरह से सलमा ने जिन्दगी के राह में बहुत दुख झेले लेकिन अब उसके पास ठीक होने की उम्मीद है। उस गैस त्रासदी की वजह से बहुत लोगों की जान चली गई और ना जाने कितने लोगों के घर बर्बाद हो गए। सलमा ने अपने खुद पर गुजरे आपबीती की कहानी बताई है जो सत्य है उसने उस परिस्थितियों को झेला है। अपने जीवन की लड़ाई लड़ी है...
नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए:-
क) सलमा का पहला कदम बीमारी में ही क्यों बढ़ा था?
उत्तर: सलमा भोपाल गैस रिसाव का शिकार हो गयी थी जिससे उसके अंदर अनेक तरह की बीमारियाँ हो गयी थीं। जब से उसने होश संभाला तब से बीमारी साथ चल रही थी। उसी बीमारी के दैरान वह धीरे-धीरे बड़ी हुई और उसने चलना सीखा। इस तरह सलमा का पहला कदम बीमारी में ही बढ़ा था।
(ख) सलमा अपनी अम्माँ से क्या कहती थी जिससे उसकी अम्माँ उसे मार देती थी?
उत्तर: सलमा के अब्बू का निधन हो गया था इससे उसकी अम्मी को ग आघात लगा था, वे हमेशा विक्षिप्त रहती थीं। जब सलमा क कि अब्बू मर चुके हैं वे नहीं आएँगे तो उसकी अम्मा उसे मारती और कहती ऐसी बातें नहीं कहते।
(ग) सलमा ने ऐसा क्यों कहा कि मैं तो अब जीना चाहती हूँ?
उत्तर: सलमा ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि वह अब आयुर्वेदिक दवाएँ खा रही थी और ठीक हो रही थी। उसे लगने लगा कि वह अब ठीक हो सकती है। वह खुश रहती है इसलिए जीना चाहती है।
"Thank you for taking the time to leave a comment, we appreciate your feedback!"