दो गौरैया
पाठ का सारांश:
प्रस्तुत कहानी “दो गौरेया” को “भीष्म साहनी” जी ने लिखा है ।
लेखक अपने घर में अपने पिताजी और माताजी के साथ रहते थे। उनके पिताजी को यह घर सराय लगता था , क्योंकि तरह-तरह के पक्षियों ने डेरा डाल रखा था। घर के आँगन में आम का पेड़ था, जिस पर सारे पक्षी निवास करते थे।लेखक के पिताजी को तोते, कौवा, कबूतर, और गोरैया सभी की आवाज शोर-सी लगती थी जबकि बाहर वालों का कहना थे कि ये सभी गाना गा रहे नाकी शोर कर रहे।
घर के अंदर भी ऐसा ही कुछ उधम मचा हुआ रहता था। चूहा, बिल्ली और चमगादड़ सभी ने तंग कर रखा था, कमरों के आसपास घूमते रहते थे जैसे कसरत कर रहे हो। घर में छिपकलियां, चींटी सभी अपना घर पर अधिकार दिखाते थे । इन सभी ने लेखक के घर को घर नहीं रहने दिया उसे जंगल जैसा बना दिया था। ऐसा प्रतीत होता था कि जैसे इस घर में सिर्फ उन लोगों का ही हिस्सा है । लेखक एवं उनके परिवार से इन जीव जंतु का कोई लेना देना नहीं था और वे हर संभव प्रयास से परिवारजन को परेशान करते रहते थे।
ये सभी जीव जंतु पूरे दिन शोर किया करते थे जिससे घर की शांति भंग रहा करती थी । लेखक एवं उसका परिवार हर रूप से प्रयास करता थे इन सभी को घर से बाहर भेजने का किन्तु किसी ना किसी तरह ये सब वापस आ जाते थे।
लेखक के परिवार ने हर संभव प्रयास करें किन्तु वे असफल रहे । लेखक के परिवार ने इन सभी को स्वीकार कर लिया था और आम दिनों की तरह जीवन यापन कर रहे थे । तभी एक दिन दो गोरैया सीधे घर के अंदर घुस आए और घर में इधर उधर उड़ कर हर जगह को भली भांति देखने लगे। कभी वे पंखो पर जाते तो कभी अलमीरा के ऊपर तो कभी रसोई घर में , इस पर लेखक के पिताजी कहते हैं कि वो दोनों घर का निरीक्षण कर रहें , उनके रहने लायक यह घर है भी कि नहीं ।
पंखे पर अपना बिछावन बिछा गौरेया ने यह साबित कर दिया कि उन्हें यह घर पसन्द आ गया है, पर शायद लेखक के पिताजी को यह पसंद नहीं आया। क्योंकि गौरेया ने पंखे के ऊपर अपना घर बना लिया था और वे घर की महंगी कालीन को गंदा किए जा रहे थे।
लेखक के पिताजी ने लाठी लेकर उन दोनों को भगाना शुरू किया किन्तु वो दोनों दयनीय सा चेहरा बना अपने घोसले में डर कर छिपी बैठी रही और वो अपने घर से बाहर ही नहीं आ रहीं थी । बाद में लेखक के पिताजी को यह ज्ञात हुआ कि उन दोनों गौरैया को तो वो भगाने में सफल हुए थे किन्तु उनके बच्चे वहीं रह गए थे ।
उन नन्हें बच्चों को अपने परिवार के लिए परेशान होता देख लेखक के पिताजी ने गौरैया को वापस घर के अन्दर आने दिया। परेशानी में गोरैया के माँ-बाप को उन्हें संभालते देख पिताजी के चेहरे पर मुस्कान आ गई और उन्होंने इन सबको अपने घर में रहना स्वीकार कर लिया।
नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
1. दोनों गौरैयों को पिताजी जब घर से बाहर निकालने की कोशिश कर रहे थे तो माँ क्यों मदद नहीं कर रही थी? बस, वह हँसती क्यों जा रही थी?
उत्तर: माँ पिताजी का मज़ाक उड़ा रही थी क्योंकि पिताजी कभी ताली बजाकर तो कभी श शू करके गौरियों को उड़ा रहे थे। गौरैया घोंसले से सिर निकाल कर झाँकती चीं-चीं करती फिर घोसले में वापस चली जाती। यह देखकर माँ हँसने लगती है। माँ ये नहीं चाहती थी कि गौरैया घर से बाहर जाये क्योंकि माँ को पता था कि उन्होंने अपने अंडे दे दिए होंगे और वे अपने बच्चों को छोड़कर नहीं जा सकती।
2. देखो जी चिड़ियों को मत निकालो। माँ ने पिताजी से गंभीरता से यह क्यों कहा?
उत्तर: माँ ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि चिड़ियों ने अपना घोंसला बना लिया था तथा उसने अंडे भी दे दिए थे। यदि पिताजी चिड़िया को निकाल देते तो वे अपने बच्चों से बिछड़ जाते तथा ये बिछड़ने का दर्द केवल माँ ही जानती हैं।
3. "किसी को सचमुच बाहर निकालना हो तो उसका घर तोड़ देना चाहिए" पिताजी ने गुस्से में ऐसा क्यों कहा? क्या पिताजी के इस कथन से माँ सहमत थी? क्या तुम सहमत हो? अगर नहीं तो क्यों?
उत्तर: चिड़ियों के लगातार शोर मचाने व तिनके गिरने के कारण पिताजी ने यह कहा । पिताजी के इस कथन से माँ बिल्कुल भी सहमत नहीं थी और हम भी सहमत नहीं है क्योंकि क्या पता उसे अंडे हो जो कि घोसला हटाने से फुट जाए और नन्ही चिड़ियाँ मर जाये।
4. कमरे में फिर से शोर होने पर भी पिताजी अबकी बार गौरैया की तरफ देखकर मुसकुराते क्यों रहे?
उत्तर: जब पिताजी घोंसले को तोड़ रहे थे, तभी उसमें से चीं-चीं की आवाज़ आई तथा उसमें रखे अंड़ों में से बच्चे निकल आए थे, तभी पिताजी ने घोंसला वापस रख दिया क्योंकि पिताजी को बच्चों को देखकर दया आ गई। अब पिताजी नीचे उतर आए इसके बाद चिड़िया दाने लाकर अपने बच्चों को खिलाने लगी। यह देखकर पिताजी मुस्कुरा रहे थे क्योंकि अब उन्हें पता चल गया था कि बच्चे होने के थोड़े दिनों बाद वे बच्चों को लेकर अपने आप ही चली जाएँगी।
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