कबीर-बानी -अर्थ सहित

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कबीर-बानी 



संत कबीरदास (सन् 1398-1518 ई०)


रचनाकार परिचय-   कबीर का जन्म 1398 ई में काशी में हुआ माना जाता है। किंवदंती है कि एक जुलाहे ने सरोवर किनारे मिलें ते जिस नन्हें शिशु को अपनाया, वही आगे चलकर अपनी वाणी द्वारा समाज को झकझोर देनेवाला जगप्रसिद्ध संत कबीर बना। आपकी अनमोल वाणी और ज्ञानोपदेश का ही प्रभाव रहा है, जिससे सदियों से चली आ रही कई कुरीतियों तथा पाखंडों को खंड- खंड कर दिया गया। तत्कालीन समाज में धर्म और जाति के नाम पर आपस में जो संघर्ष, भेद चल रहा था, उसे कबीर ने अपने विचारों से मिटाने का प्रयास किया।

कबीर साहित्य को तीन भागों में पाया जाता है। साखी, सबद और रमैनी।


पाठ परिचय-

कबीर के चुने हुए कुछ दोहों को  'कबीर बानी'  के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इनमें ज्ञानरूपी अमृत भंडार छिपा है। कबीर ने इनमें साधु-पुरुषों के लक्षण, उनकी सेवावृत्ति और उनके संग से होनेवाले लाभ का वर्णन किया है। उनका संदेश है कि मानव को परोपकारी होना चाहिए। उनके अनुसार अपनी करनी का फल हमें ही भुगतना पड़ता है। हम ऐसी करनी करें कि भावी पीढ़ी हमें युगों-युगों तक न भूल पाए। सच्चा ज्ञानी वही माना जाता है, जो मानव मात्र से प्रेम करता है।


    संत कबीरदास जी के दोहे अर्थ सहित:-



1. साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय 

    सार सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय

दोहे का अर्थ:  कबीर जी कहते हैं हमें अपने जीवन में ऐसे सज्जन की आवश्यकता होती है जिसका स्वभाव अनाज को साफ करने वाले सूप जैसा हो। 

जिस प्रकार सूप अनाज को साफ करते हुए दानों को अलग रख लेता है तथा कचरे को उड़ा देता है। ठीक उसी प्रकार इस स्वभाव का सज्जन यदि हमारे साथ होगा तो वह हमारे सद्गुणों को तराशते हुए हमें सार्थक बना देगा तथा हमारे अवगुणों को अनाज के कचरे की भांति समाप्त कर देगा।

हमें अपने जीवन में ऐसे सज्जनों का साथ लेना चाहिए जो इस स्वभाव के हों। चाहे वे किसी भी रूप में हमारे साथ हों। ऐसे सज्जन हमारे मित्र भी हो सकते हैं और गुरु भी। ऐसे सज्जनों का साथ हमारे सभी अवगुणों को दूर कर हमारे जीवन को अर्थहीन से अर्थपूर्ण बना देता है। ये ही इस दोहे का भाव है।


2. दुख में सुमिरन सब करै, सुख में करै न कोय

    जो सुख में सुमिरन करै तो दुख काहे को होय।।

दोहे का अर्थ:   कबीर दास जी कहते हैं जब मनुष्य जीवन में सुख आता हैं तब वो ईश्वर को याद नहीं करता लेकिन जैसे ही दुःख आता हैं वो दौड़ा दौड़ा ईश्वर के चरणों में आ जाता हैं फिर आप ही बताये कि ऐसे भक्त की पीड़ा को कौन सुनेगा? एक सच्चे भक्तों को दुखों के साथ भी सुकू में भी भगवान को याद करना चाहिए।


३. बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।

    जो दिल खोजौं आपना, मुझ-सा बुरा ना कोय।।

दोहे का अर्थ:   महान कवि कबीर दास जी ने अपने इस दोहे में कहा है कि मैं इस दुनिया में दूसरों की बुराई ढूंढने निकला था। मगर, पता नहीं क्यों, मुझे सारे संसार में कोई बुरा व्यक्ति नहीं मिला। फिर मैंने अपने दिल में झांककर देखा, तो मुझे पता चला कि इस दुनिया में मुझसे बुरा कोई है ही नहीं, मैं ही सबसे बुरा प्राणी हूँ।

अपना उदाहरण देते हुए यहाँ कबीरदास जी ने समाज को शिक्षा दी है कि हे मानवों! इस दुनिया की बुराइयों को ढूंढने से पहले अपनी बुराइयाँ ढूंढो और उन्हें जड़ से ख़त्म कर दो। जब तुम ऐसा कर दोगे, तो तुम्हें इस पूरे संसार का कोई भी प्राणी बुरा नहीं लगेगा। 

इस तरह अपने दोहे में कबीर जी ने यह कामना की है कि हम सभी अपने मन में छिपी बुराइयों को पहचानें और उन्हें ख़त्म करने की दिशा में काम करें। जब हम सत्कर्म करेंगे, तभी तो हमारा मानव जन्म सफल होगा।


4. बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।

  पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर ॥

दोहे का अर्थ:   कबीरदास जी ने बहुत ही अनमोल शब्द कहे हैं कि यूँही बड़ा कद होने से कुछ नहीं होता क्यूंकि बड़ा तो खजूर का पेड़ भी हैं लेकिन उसकी छाया राहगीर को दो पल का सुकून नही दे सकती और उसके फल इतने दूर हैं कि उन तक आसानी से पहुंचा नहीं जा सकता. 

इसलिए कबीर दास जी कहते हैं ऐसे बड़े होने का कोई फायदा नहीं, दिल से और कर्मो से जो बड़ा होता हैं वही सच्चा बड़प्पन कहलाता हैं।


5. जो जल बाढ़ै नाव में, घर में बाढ़ै दाम। 

   दोऊ हाथ उलीचिए, यही सज्जन को काम।।

दोहे का अर्थ:  अधिक वर्षा होने के कारण नाव में बहुत अधिक जल भर जाता है। इस परिस्थिति में बुद्धिमानी इसी में है, कि इस जल को नाव से खाली कर दिया जाए। कबीरदास जी कहते हैं कि ठीक इसी प्रकार घर में धन-संपत्ति के अधिक होने पर उसे उदारतापूर्वक दोनों हाथों से दान करने में ही बुद्धिमानी है। बुद्धिमान व्यक्ति धन का दान कर अपनी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त कर लेते हैं।


6. करता था तो क्यों रहा ,अब काहे पछताय

     बोया पेड़ बबूल का ,आम कहाँ से खाय

दोहे का अर्थ:  कबीर साहेब की वाणी है की जीवात्मा जब बुरे काम करती है तो विचार नहीं करती है. वह बाद में पछतावा करती है लेकिन पछतावा करने से कोई लाभ नहीं होने वाला है. तुमने यदि बबूल के पेड़ को बोया है तो अब तुम आम का फल कहाँ से खाओगे. जो व्यक्ति जैसे कर्म करता है वैसा ही फल उसे प्राप्त होता है. 

जीवन भर व्यक्ति स्वंय की लालसाओं और स्वार्थों की पिछे भागता फिरता है. कबीर साहेब ने कर्म प्रधानता पर बल दिया है, जैसे हमारे कर्म होंगे वैसे ही फल हमें प्राप्त होंगे।


7.  जो तोको कांटा बुवै, ताहि बोय तू फूल।

    तोहि फूल के फूल हैं, वाको है तिरसूल ।।

दोहे का अर्थ:   जो तुम्हारे लिए कांटा बोता है, उसके लिए तुम फूल बोओ अर्थात् जो तुम्हारी बुराई करता है तू उसकी भलाई कर। तुम्हें फूल बोने के कारण फूल मिलेंगे और जो कांटे बोता है उसे कांटे मिलेंगे तात्पर्य यह कि नेकी के बदले नेकी और बदी के बदले बदी ही मिलता है। यही प्रकृति का नियम है।


8. पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित हुआ न कोय

    एकै अक्षर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय

दोहे का अर्थ : अर्थ : बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़ कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार पहुँच गए, पर सभी विद्वान न हो सके. कबीर मानते हैं कि यदि कोई प्रेम या प्यार के केवल ढाई अक्षर ही अच्छी तरह पढ़ ले, अर्थात प्यार का वास्तविक रूप पहचान ले तो वही सच्चा ज्ञानी होगा.  


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"Thank you for taking the time to leave a comment, we appreciate your feedback!"

  1. I appreciate the time and effort you put into writing this post.

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  2. Your post is very informative. Thanks for sharing!

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