गारो
मेघालय राज्य की एक प्रमुख जनजाति है गारो।
गारो लोग स्वभाव से ही शांतिप्रिय, परिश्रमी और प्रकृति को प्यार करने वाले होते हैं। इसी गारो समाज के दो महापुरुषों के नाम हैं— जा पा जलिन पा और सुक पा बुंगि पा। गारो समाज इन दो महापुरुषों की बड़ी श्रद्धा से याद करता है।
गारो लोग 'मेघालय' में कैसे बस गए, इसके बारे में एक कहानी प्रचलित है। कहा जाता है कि हज़ारों साल पहले गारो लोगों के पूर्वज चीन और तिब्बत की ओर सुदूर घाटियों में इधर-उधर भटकते रहते थे।
जहाँ खाने-पीने का साधन मिल जाता.. वहाँ रुक जाते। जब भोजन की कठिनाई होती तो नए स्थानों की खोज में निकल पड़ते। यह खानाबदोश जीवन कब तक चलता रहा होगा, कुछ सही-सही नहीं कहा जा सकता।
भोजन की तलाश में भटकने के अतिरिक्त गारो लोगों को विषम मौसम और जंगली जानवरों का भी सामना करना पड़ता था। इस कारण गारो लोग बहुत परेशान होते थे।
उन्हीं दिनों गारो समाज में जा पा जलिन पा और सुक पा बुंगि पा का जन्म हुआ था। इन दो महापुरुषों ने अपने लोगों की परेशानियों को देखा और समझा। दोनों ने गारो लोगों को उस विषम परिस्थिति से निकालकर कहीं अच्छे स्थान पर ले जाने का फ़ैसला किया।
दोनों महापुरुषों ने गारो लोगों को एकत्रित किया। उन्होंने बताया कि वे उन्हें एक सुंदर स्थान पर ले जाएँगे । गारो लोग उनका बहुत सम्मान करते थे। सभी लोगों ने उनकी बात मान ली।
कहा जाता है कि जलिन पा और बुंगि पा इतने निडर और प्रभावशाली व्यक्ति थे कि जंगलों के खूॅंखार जानवर भी उनकी आहट या आवाज़ सुनकर भागने लगते थे। वे भयंकर तूफ़ानों में भी सही मार्ग और दिशा का पता लगा लेते थे।
रात में भी उन्हें अपने साथियों का मार्गदर्शन करने में कभी परेशानी नहीं होती थी। अपने सहज बोध और विवेक द्वारा वे आने वाले संकट का पूर्वानुमान कर लेते और अपने साथियों को मुसीबतों से बचा लेते।
इस तरह सारे गारो एक साथ हिमालय की तराई को पार करते हुए ब्रह्मपुत्र नदी घाटी की ओर बढ़े। वे अपनी संपत्ति- घोड़े, जानवर आदि अपने साथ लेकर चल रहे थे। कभी-कभी महीनों तक चलते रहते और कहीं-कहीं वर्षों ठहर जाते। वर्षों तक इस प्रकार यात्रा होती रही। वे हिमालय की घाटियों के बीच रास्ता नापते रहे।
जलिन पा और बुंगि पा ने अपने साथियों को सदैव आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। कई वर्षों की कठिन यात्रा के बाद गारो लोग असम के मैदानी जंगलों में आ पहुँचे। कहा जाता है कि उनका पहला पड़ाव कुचविहार के वनों में हुआ।
कुचविहार पर उन दिनों असम के राजा का अधिकार था। उसने गारो लोगों को आगे बढ़ने से रोक दिया। गारो लोग प्रारंभ से ही शांतिप्रिय रहे हैं। उन्होंने लड़ाई का रास्ता नहीं अपनाया। जलिन पा और बुंगि पा ने असम के राजा से बातचीत करके उन्हें समझाया। असम का राजा उन्हें मार्ग देने के लिए सहमत हो गया। उसका विवाह एक गारो सुंदरी से करा दिया गया। इस तरह वातावरण मित्रतापूर्ण हा गया।
कुछ विद्वानों का अनुमान है कि यह घटना लगभग प्रथम सदी ईसा पूर्व की है। आज कुचविहार इलाका पश्चिम बंगाल राज्य में पड़ता है। कहा जाता है कि गारो समाज के कुछ लोग कुचविहार क्षेत्र में बस गए थे। आज भी कुचविहार क्षेत्र में तथा आसपास के कई स्थानों में गारो समाज के लोग रहते हैं।
अब जलिन पा और बुंगि पा ने अपने लोगों को गारो पहाड़ी की घाटियों की और चलने की सलाह दी। यह घाटी बहुत ही सुंदर थी। यहाँ पहाड़ी झरने, जंगली फूल फल, जड़ी-बूटियाँ और पशु-पक्षी वातावरण को और अधिक आकर्षक बना रहे थे। जमीन भी बहुत उपजाऊ थी। इस कारण उन्होंने वहीं बसने का फैसला किया। आज यह क्षेत्र गारो समाज का मूल निवास स्थान बन गया है। गारो लोग इस क्षेत्र को अपनी पवित्र भूमि मानते हैं।
गारो लोग प्रारंभ से ही प्रकृति के विभिन्न प्रकार के संसाधनों की तलाश करना ही अपना मनोरंजन मानते हैं। जंगलों में घूमना, फल-फूलों, अन्न, कंद-मूल आदि की खोज करना, खेती के लिए उपजाऊ भूमि की पहचान करना आदि उनको शुरू से ही पसंद रहे हैं।
आज भी गारो लोगों ने अपने पारंपरिक हुनर को कायम रखा हुआ है। गारो समाज और गारो संस्कृति भारत का गौरव है । गारो समाज आज भी जलिन पा और बुंगि पा को बड़ी श्रद्धा और आदर से याद करते हैं।
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